रणथंभौर का सूरज आग उगल रहा था। दुर्ग की चट्टानों से पसीना छूट रहा था, मानो वो भी इस भीषण युद्ध को सह न पा रहे हों, रानी पद्मावती अपने केश खोलकर दुर्ग की प्राचीर पर खड़ी थीं, उनके सामने एक विशाल सेना थी, जिसका नेतृत्व दिल्ली के क्रूर सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी कर रहा था. पीछे उनकी हवेली में जौहर की आग धधक रही थी।
पद्मावती सिंहल सौंदर्य की प्रतिमा थीं. अलाउद्दीन उनकी खूबसूरती के दीवाना था, लेकिन रानी पद्मावती अपने पति राणा रतन सिंह के प्रति समर्पित थीं। अलाउद्दीन ने छल से राणा रतन सिंह को युद्ध में फंसाकर मार डाला और फिर रानी पद्मावती को हासिल करने रणथंभौर दुर्ग को घेर लिया।
रानी पद्दमवती जानती थीं कि हार निश्चित है, उन्होंने अपने सम्मान की रक्षा के लिए जौहर का रास्ता चुना, जौहर राजपूत महिलाओं द्वारा किया जाने वाला एक कठोर परंपरा थी, जिसमें वे दुश्मन के हाथों में जाने से बचने के लिए आग में कूद जाती थीं. रानी पद्मावती ने आग में कूदने से पहले अलाउद्दीन को युद्ध का एक नया रूप दिखाया. ये सैनिक युद्ध के लिए तैयार नहीं थे, उन्होंने राजपूत वीरों को वीर वेशभूषा में सजाकर दुर्ग से बाहर निकाला.उन्होंने केसरिया वस्त्र पहने थे और उनके सिर पर जयमाल सजी थी. अलाउद्दीन को लगा कि रानी ने हार मान ली है और ये उनका आत्मसमर्पण है। लेकिन जैसे ही अलाउद्दीन की सेना उन वीरों के पास पहुंची, वैसे ही उन्होंने अपने केसरिया वस्त्र फेंक दिए और नीचे छिपे हुए कवच और हथियार धारण कर लिए. ये वीर राजपूत के वीर सपूत थे, जो अंतिम सांस तक लड़ने के लिए तैयार थे. उन्होंने अलाउद्दीन की सेना को रोक दिया और अंतिम सांस तक लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए.
रानी पद्मावती और रणथंभौर का ये किस्सा राजपूत इतिहास में वीरता और सम्मान का प्रतीक बन गया. यह कहानी बताती है कि राजपूत अपने धर्म, गौरव और मातृभूमि के लिए सर्वोच्च बलिदान देने से पीछे नहीं हटते थे.